हिन्दी भारोपीय परिवार की आर्य भाषा है। आर्य भाषाओं का विकास निम्नलिखित क्रमानुसार माना जाता है :-
वैदिक संस्कृत > संस्कृत > पालि > प्राकृत > अपभ्रंश > हिन्दी और अन्य आधुनिक भारतीय आर्य भाषाऐं।
यहां हम हिन्दी भाषा की उत्पत्ति और विकास के बारे में सरल भाषा में जानेंगे।
भारत में प्रमुख रूप से आर्य परिवार एवं द्रविड़ परिवार की भाषाएं बोली जाती हैं उत्तर भारत की भाषा आर्य परिवार की भाषा तथा दक्षिण भारत की भाषा द्रविड परिवार की भाषा कहलाती हैं। द्रविड़ भाषाओं में तमिल, तेलुगु, मलयालम आदि दक्षिण भारत की भाषा आती हैं।
संस्कृत को भारत की सबसे प्राचीन भाषा माना जाता है। इसे आर्य भाषा व देव भाषा के नाम से भी जाना जाता है। संस्कृत को हिन्दी की जननी कहा गया है। हिन्दी भाषा में समयानुसार काफी परिवर्तन हुए। और हिन्दी भाषा धीरे धीरे लम्बे के बाद वर्तमान स्वरूप में आई।
भारतीय आर्य भाषाओं में हिन्दी के विकास को कालक्रम के आधार पर मुख्य रूप से तीन खंड में विभक्त कर सकते हैं। जो निम्नानुसार है :-
1. प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल खंड (1500 ई. पू. से500 ई.पू. तक)
2. मध्य भारतीय आर्य भाषा कालखंड (500 ईसा पूर्व से 1000 ईस्वी तक)
3. आधुनिक भारतीय आर्य भाषा कालखंड ( 1000 ईस्वी से वर्तमान तक)
मुख्य रूप से वेद , ब्राह्मण ग्रंथ, उपनिषद की रचना इस काल में की गई। इनके अलावा वाल्मीकि ने रामायण, व्यास ने महाभारत, और अन्य संस्कृत विद्वान महाकवि कालिदास, भाष, माघ, अश्वघोष आदि ने संस्कृत भाषा में रचनाएं लिखीं। इस कालखंड को दो भागों में बांट सकते हैं :- वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत।
मूल रूप से वेदों की रचना इस संस्कृत भाषा में की गई, इसलिए इसे वैदिक संस्कृत कहा गया।
प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद की रचना इसी समय की गई। इसके साथ ही ब्राह्मण ग्रंथों और उपनिषदों की रचना वैदिक संस्कृत में हुई।
इस काल में साहित्य में संस्कृत का उपयोग होने लगा, इसलिए इसे लौकिक संस्कृत कहा गया।
इस काल में वाल्मीकि ने रामायण, वेदव्यास ने महाभारत की रचना की। इनके अलावा संस्कृत कवि माघ, अश्वघोष तथा पाणिनि ने अष्टाध्यायी की रचना इसी समय की।
इसे तीन भागों में बांट कर अध्ययन किया जा सकता है।
संस्कृत भाषा में धीरे-धीरे काफी बदलाव आया। 500 ई. पू. की भाषा को पालि भाषा कहा गया।
बौद्ध ग्रंथों की रचना पालि भाषा में की गई। इसके तीनों सुतपिटक, अभिधम्म पिटक, और विनय पिटक पालि भाषा में लिखे गए।
पहली ईस्वी तक आते-आते संस्कृत भाषा में काफी बदलाव हुआ और उसे बदलाव के बाद इस भाषा को प्राकृत भाषा नाम दिया गया।
प्राकृत भाषा बोलचाल की भाषा होने के कारण पंडितों में प्रचलित नहीं हो पाई थी। संस्कृत नाटकों के अधम पात्रों इस बोली का प्रयोग करते थे ।
जैन साहित्य प्राकृत भाषा में लिखा गया था वह प्राकृत भाषा के पांच भेद माने गए हैं।
शौरसेनी प्राकृत – यह भाषा मथुरा और सुरसेन जनपद में बोली जाती थी इस मध्य देश की बोली भी कहा जाता था।
पैशाची प्राकृत – कश्मीर के आसपास बोली जाती थी।
महाराष्ट्री प्राकृत – महाराष्ट्र में बोली जाती थी।
अर्धमागधी प्राकृत – यह मागधी और शौरसैनी के बीच की भाषा थी।
मागधी प्राकृत – मगध के आसपास की भाषा।
अपभ्रंश भाषा का 500 ई से 1000 ई तक का कालखंड माना जाता है। अपभ्रंश भाषा को अवहट्ट , अवहत्थ, अवहट्ठ, देश भाषा, देशीभाषा आदि नाम से जाना जाता है। अपभ्रंश का शाब्दिक अर्थ होता है बिगड़ा हुआ या गिरा हुआ।
हिन्दी भाषा का विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है।
अपभ्रंश भाषा का जन्म काल डॉ. उदय नारायण तिवारी द्वारा 700 ई. माना गया है।
डॉ भोलानाथ तिवारी ने अपभ्रंश भाषा का जन्म 500 ईस्वी के आसपास माना है।
आधुनिक आर्य भाषाओं का विकास इसी अपभ्रंश भाषा से हुआ था हिंदी का विकास भी अपभ्रंश भाषा से ही हुआ है अतः हिंदी की जननी अपभ्रंश मानी जाती है।
भारत में अपभ्रंश भाषा को क्षेत्र के हिसाब से सात भागों में बांट सकते हैं।
1. शौरसेनी अपभ्रंश – पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी और गुजराती।
2. पैशाची अपभ्रंश – पंजाबी, लहंगा।
3. मागधी अपभ्रंश – बिहारी, बंगला, असमिया, उड़िया।
4. ब्राचड अपभ्रंश – सिन्धी।
5. महाराष्ट्री अपभ्रंश – मराठी।
6. अर्धमागधी अपभ्रंश – पूर्वी हिन्दी
7. खस अपभ्रंश – पहाड़ी
हिन्दी भाषा के विकास को इस प्रकार समझ सकते हैं।
वैदिक संस्कृत > संस्कृत > पालि > प्राकृत > अपभ्रंश > हिन्दी।
हिन्दी भाषा की उत्पत्ति शौरसेनी अपभ्रंश से हुई है।
हिंदी भाषा एवं अपभ्रंश भाषा का संबंध निम्न प्रकार है :-
१. 1000 ईस्वी तक आते-आते हिंदी बोलचाल की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो गई थी। अतः हिंदी भाषा का प्रारंभ 1000 ई. से प्रारंभ हुआ माना जाता है।
२. अपभ्रंश में काम आने वाले शब्दों को हिंदी में तद्भव शब्दों के रूप में ग्रहण कर लिया।
३. भाषा की प्रवृत्ति कठिनता से सरलता की ओर रहती है। संस्कृत में तीन वचन व तीन लिंग होते हैं जबकि हिंदी भाषा में दो वचन और दो लिंग हैं।
४. हिंदी ने अपभ्रंश भाषा की सभी प्रवृत्तियों को अपना लिया गया है। संस्कृत पालि और प्राकृत भाषा संयोगात्मक थी जबकि अपभ्रंश भाषा वियोगात्मक है।
पुरानी हिन्दी या अपभ्रंश भाषा के प्रमुख कवि और रचना
कवि का नाम रचना का नाम
सरहपा/ सरहपाद – मुक्तक रचनाएं
देवसेन – श्रावकाचार
स्वयंभू – पउमचरिउ, स्वयंभू छंद, रिठ्ठणेमि
अब्दुर्रहमान – सन्देश राशक
धनपाल — भविसयत्तकहा
पुष्पदंत – महापुराण, जसहर चरिउ
रामसिंह – पाहुडा दोहा
जिनिदत्त सूरी – उपदेश रसायन रास
जोइन्दु – परमात्म प्रकाश, योगसार
हेमचंद्र – शब्दानुशासन
विद्यापति – कीर्तिलता, कीर्तिपताका
1000 ई के बाद अपभ्रंश भाषा आर्य भाषा का काल समाप्त हुआ तथा वर्तमान भारतीय आर्य भाषाओं का विकास शुरू हो गया।
आगे चलकर हिंदी एवं हिंदी की सहयोगी अन्य बोलियों को पांच भागों में विभक्त किया गया।
हिंदी भाषा उत्तर भारत के 10 राज्यों में बोली जाती है। हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड ,उत्तर प्रदेश, राजस्थान ,मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड।
हिंदी भाषा के अंदर आने वाली उपभाषा और बोलियां का विवरण निम्नानुसार है :-
उपभाषाएं : । बोलियां
1. पश्चिमी हिंदी : खड़ी बोली (कोरवी) बृज भाषा, बुंदेली,
हरियाणवी ( बांगरू) , कन्नौजी
2. पूर्वी हिंदी: अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी
3. राजस्थानी: मारवाड़ी ,जयपुरी, मेवाती, और मालवी
4. पहाड़ी: गढ़वाली, कुमाऊनी, नेपाली
5. बिहार : मैथिली, मगही, भोजपुरी
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