इस लेख में हम समास किसे कहते हैं, समास की परिभाषा, समास के भेद उदाहरण सहित, समास विग्रह किसे कहते हैं, के बारे में अध्ययन करेंगे। जिससे सभी प्रतियोगी परीक्षाओं और Class 6 to 12 तक सवाल पूछे जाते हैं। आइए Samas in Hindi को सरल, सुबोध भाषा में समझिए।
समास का शाब्दिक अर्थ होता है – संक्षेप।
समास शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – सम् + आस ।
सम् का अर्थ होता है – पास
आस, का अर्थ होता है, आना या बैठना।
इस प्रकार समास का अर्थ होता है – दो शब्दों का पास-पास आना।
“एक से अधिक पदों के बीच विभक्ति चिह्न तथा योजक शब्दों को हटाकर पास-पास लाने की विधि को ” समास ” कहते हैं।
जैसे
सभाभवन = सभा के लिए भवन।
समास होने से पूर्व पदों को समास विग्रह कहते हैं।
अर्थात दोनों पदों को अलग-अलग लिखना, समास विग्रह कहलाता है।
सामासिक पद – Samas in Hindi
“जिन पदों को मिलाकर एक सार्थक पद बना दिया जाए, या संक्षिप्त कर दिया जाए उस समास युक्त पद को समस्त पद या सामासिक पद कहते हैं।”
अर्थात समास के नियमों से निर्मित पदों को सामासिक शब्द कहते हैं।
पूर्व पद और उत्तर पद ( Samas in Hindi )
प्रत्येक समास में कम से कम दो पद या शब्द होते हैं। प्रथम पद को पूर्व पद कहते हैं तथा द्वितीय पद को उत्तर पद कहते हैं।
जैसे : नीलकमल
इसमें नील शब्द पूर्व पद तथा कमल उत्तर पद है।
समास और संधि में अन्तर
1. वर्णों के मेल से उत्पन्न विकार को संधि कहते हैं। जबकि समास में शब्दों या पदों का मेल होता है ।
2. संधि युक्त शब्द को मूल रूप में अलग-अलग करने क्रिया को संधि विच्छेद कहते हैं। जबकि सामाजिक पदों को अलग-अलग करने की क्रिया को समास विग्रह कहते हैं।
3. संधि के नियमों में अधिकतर तत्सम शब्दों का प्रयोग होता है। जबकि समास में तत्सम शब्दों के साथ-साथ अन्य भाषा के शब्द में प्रयोग किए जाते हैं।
4. संधि में शब्दों का योग नहीं होता। इसमें दो शब्दों के जोड़ने पर केवल विकार उत्पन्न होता है, जबकि समास में पदों के बीच के विभक्ति चिह्न व शब्द हटाए जाते हैं।
समास के मुख्य रूप से 6 भेद होते हैं
1. अव्ययीभाव समास (avyayibhav samas)
2. तत्पुरुष समास ( Tatpurush samas)
3. कर्मधारय समास ( Karmdharay samas,
4. द्विगु समास ( Dvigu samas)
5. द्वंद्व समास (Dvandva samas)
6. बहुव्रीह समास ( Bahuvrih samas)
अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं?
“जिस समास में प्रथम पद अव्यय होता है तथा उसका अर्थ प्रधान होता है, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। इसमें लिंग, वचन, कारक आदि के कारण रूप परिवर्तन नहीं होता है।”
अव्ययीभाव समास की मुख्य विशेषताएं
A. इस समास में पूर्व पद प्रधान होता है।
B. इस समास का पूर्व पद कोई ना कोई उपसर्ग होता है।
C. इस समास में पदों की पुनरावृत्ति होती है या प्रत्यय के रूप में (अनुसार, उपरांत ,पूर्वक ) आदि शब्द जुड़े होते हैं।
D. इस समास के पूर्व पद में कोई अविकारी शब्द होता है।
अव्ययीभाव समास के उदाहरण
यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार।
यथास्थान = जो स्थान निश्चित हो।
यथाशीघ्र = जितना शीघ्र हो।
यथासंभव = जैसा संभव हो
यथामति = जैसी मति हो
यथासमय = जो समय निश्चित है
यथागति = गति के अनुसार
यथास्थिति = जैसी स्थिति हो
यथार्थ = जैसा अर्थ हो वैसा
प्रत्यक्ष = अक्षि ( आंख) के सामने
प्रतिशत = प्रत्येक शत
प्रतिहिंसा = हिंसा के बदले हिंसा
प्रतिध्वनि = ध्वनि के बाद ध्वनि
प्रतिद्वंद्व = द्वन्द्व के बदले द्वंद्व
नीरव = ध्वनि (रव ) रहित
नीरोग = रोगरहित
निरामिष = आमिष के रहित
नीरंध्र = रंध्ररहित
बेईमान = बिना ईमान के
बेजान = बिना जान(शक्ति )के
बेरहम = बिना रहम के
आजीवन = जीवनभर या जीवन पर्यंत
आजन्म = जन्म से
आमरण = मरण तक या मृत्यु पर्यन्त
सपरिवार = परिवार सहित
सप्रमाण = प्रमाण सहित
सार्थक = अर्थ सहित
सावधान = अवधान रहित
सपत्नीक = पत्नी सहित
जब पदों में पुनरावृत्ति हो तो –
लूटमलूट = लूट के बाद लूट
फूटमफूट = फूट के बाद फूट
हाथोंहाथ = हाथ ही हाथ में
रातोंरात= रात ही रात में
मन्द-मन्द = मन्द के बाद मन्द
साफ-साफ = साफ के बाद साफ
चलाचली = चलने के बाद चलना
मारामारी = मार के बाद मार
बीचोंबीच = बीच के बीच में
एकाएक = एक के बाद एक
भागमभाग = भागने के बाद भागना
इंच्छानुसार = इच्छा के अनुसार
मरणोपरांत = मरने के उपरांत
योग्यतानुसार = योग्यता के अनुसार
निर्देशानुसार = निर्देश के अनुसार
विश्वासपूर्वक = विश्वास के साथ
प्रयत्नपूर्वक प्रयत्न के साथ
अव्ययीभाव समास के अन्य महत्वपूर्ण उदाहरण
प्रतिलिपि = लिपि के समान लिपि
अनुसरण = सरण (जाना) के बाद सरण
अतिरिक्त = रिक्त के अलावा
अतिवृष्टि = वृष्टि की अति
आजानुबाहु = जानु (घुटने) से बाहु तक
दिनानुदिन = दिन के पीछे दिन
परोक्ष = अक्षि के परे
अनुगमन = गमन के पीछे गमन
आपादमस्तक = पैर (पाद) से मस्तक तक
तत्पुरुष समास की महत्वपूर्ण विशेषताएं , तत्पुरुष समास किसे कहते हैं?
(अ) इस समास का उत्तर पद प्रधान होता है।
(ब) इस समास में पूर्व पद संज्ञा या विशेषण होते हैं।
(स) तत्पुरुष समास में कर्ता तथा संबोधन कारक को छोड़कर शेष सभी कारकों के विभक्ति चिह्नों का लोप होता है।
(द) तत्पुरुष समास में लिंग, वचन अंतिम पद के अनुसार प्रयुक्त होते हैं। प्रथम पद मात्र विशेषण का कार्य करता है। इसलिए वह दूसरे पद विशेष्य पर निर्भर करता है।
(य) तत्पुरुष समास में जिस विभक्ति का लोप होता है, उसी को आधार मानकर उसके भेद का नामकरण किया जाता है।
तत्पुरुष समास के मुख्य रूप से 6 भेद होते हैं:
A. कर्म तत्पुरुष : इस समास में कर्म के विभक्ति चिन्ह ” को ” का लोप हो जाता है। जैसे :
जलधर = जल को धारण करने वाला।
मनोहर = मन को हारने वाला
चितचोर = चित्त को चोरने वाला
चिड़ीमार = चिड़ियों को मारने वाला
शरणागत= शरण को आगत या शरण को आ हुए
मुंह तोड़ = मुंह को तोड़ने वाला
स्वर्ग प्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त
यश प्राप्त = यश को प्राप्त
धनुर्धर = धनु: को धारण करने वाला
जितेंद्रिय = इंद्रियों को जीतने वाला
हस्तगत = हस्त हो गया हुआ
स्वर्गप्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त
कमरतोड़ = कमर को तोड़ने वाला
गिरहकट= गिरह (जेब) को काटने वाला
B. करण तत्पुरुष – Samas in Hindi
करण कारक के विभक्ति चिन्ह (से, द्वारा, के द्वारा ) का लोप हो जाता है। जैसे
तुलसीकृत = तुलसी के द्वारा कृत
गुणयुक्त = गुणों से युक्त
ज्ञानयुक्त = ज्ञान से युक्त
हस्तलिखित = हाथ से लिखित
रेखांकित = रेखा से अंकित
मेघाच्छन्न = मेघों से आच्छन्न या ढका हुआ
रेलयात्रा = रेल के द्वारा यात्रा
रत्नजड़ित = रत्नों से जड़ित
वाग्युद्ध = वाणी से युद्ध
ईश्वरप्रदत्त = ईश्वर द्वारा प्रदत्त
रसभरी = रस से भरी
मनगढ़ंत = मन से गढ़ा हुआ
श्रमजीवी = श्रम से जीवित रहनेवाला
धर्मयुक्त = धर्म से युक्त
C. संप्रदान तत्पुरुष – Samas in Hindi
संप्रदान कारक के विभक्ति चिन्ह ‘ के लिए ‘ का लोप हो जाता है।
हवनसामग्री = हवन के लिए सामग्री
प्रयोगशाला = प्रयोग के लिए साला
माल गोदाम = माल के लिए गोदाम
सत्याग्रह = सत्य के लिए आग्रह
लोकसभा = लोक के लिए सभा
गुरुदक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा
स्नानघर = स्नान के लिए घर
सभाभवन = सभा के लिए भवन
पुस्तकालय = पुस्तक के लिए आलय
गौशाला = गायों के लिए शाला
देवालय = देव के लिए आलय
देशभक्ति= देश के लिए भक्ति
कारावास = कारा ( कैदी ) के लिए आवास
D. अपादान तत्पुरुष – Samas in Hindi
अपादान कारक में विभक्ति चिन्ह “से अलग होना” का लोप हो जाता है।
पथभ्रष्ट= पथ से भ्रष्ट
ऋणमुक्त= ऋण से मुक्त
पदच्युत = पद से च्युत
कामचोर = काम से जी चुराने वाला
पापमुक्त = पाप से मुक्त
नेत्रहीन = नेत्रों से हीन
इन्द्रियातीत = इन्द्रियों से अतीत (परे)
आकाशपतित = आकाश से पतित
मृत्युभय = मृत्यु से भय
सेवानिवृत्त = सेवा से निवृत्त
जन्मान्ध = जन्म से अंधा
क्रियाहीन = क्रिया से हीन
E. सम्बन्ध तत्पुरुष – Samas in Hindi
संबंध कारक के विभक्ति चिन्ह (का, की, के,) का लोप हो जाता है।
जलाशय = जल का आशय
ऋषिकन्या = ऋषि की कन्या
सेनापति = सेना का पति
राजदूत = राजा का दूत
राजमाता = राजा की माता
राजकन्या= राजा की कन्या
कन्यादान = कन्या का दान
राज्यसभा = राजा की सभा
आमरस = आम का रस
वनमाली = वन का माली
घुडदौड = घोड़ों की दौड़
आनन्दमठ = आनन्द का मठ
मंत्रिपरिषद = मंत्रियों की परिषद
नरबलि = नर की बलि
रक्तदान = रक्त का दान
विश्वासपात्र = विश्वास का पत्र
प्राणाहुति = प्राण की आहुति
वाग्दान = वाक् का दान
जननायक = जनों का नायक
दावानल =दावा( जंगल) की अनल (आग )
नगर सेठ = नगर का सेठ
नगरपालिका = नगर की पालिका
जलाशय = जल का आशय
जगन्नाथ = जगत का नाथ
F. अधिकरण तत्पुरुष
अधिकरण कारक के विभक्ति चिन्ह (में ,पर )का लोप हो जाता है।
कविश्रेष्ठ = कवियों में श्रेष्ठ
लोकप्रिय = लोक में प्रिया
ऋषिराज = ऋषियों में राजा
नरोत्तम = नरों में उत्तम
मुनिश्रेष्ठ = मुनियों में श्रेष्ठ
कविपुंगव = कवियों में पुंगव
विषयासक्त = विषयों में आसक्त
गृहप्रवेश = ग्रह में प्रवेश
क्षणभंगुर = क्षण में भंगुर
घुड़सवार = घोड़े पर सवार
शिलालेख = शिला पर लेख
नीतिनिपुण = नीति में निपुण
कार्यकुशल = कार्य में कुशल
हरफनमौला = हरफन में मौला अर्थात कला में उस्ताद
सर्वोत्तम = सर्व में उत्तम
रणवीर = रण में वीर
नराधम = नरों में अधम
जग बीती = जग पर बीती हुई
शास्त्रप्रवीण = शास्त्रों में प्रवीण
आपबीती = आप पर बीती हुई
पर्वतारोहण = पर्वत पर आरोहण
आत्मकेंद्रित = आत्मा पर केंद्रित
इनके अलावा तत्पुरुष समास के अन्य भेद भी प्रचलन में है ।
अलुक् तत्पुरुष समास
जिस समास में संस्कृत भाषा के शब्दों में पूर्व पद की विभक्ति का पूरी तरह लोप नहीं होता है उसे अलुक तत्पुरुष समास कहते हैं।
धनंजय = धन को जय करने वाला
धुरंधर = धुरी को धारण करने वाला
युधिष्ठिर = युद्ध में स्थिर रहने वाला
वाचस्पति = वाणी का पति
अन्तेवासी = समीप में वास करने वाला
मनसिज = मन में सृजित होने वाला
दूधवाला = दूध देनेवाला
चायवाला = चाय देने वाला
चूहेदानी = चूहे की दानी
दुकानदार = दुकान का दार ( मालिक)
नञ् तत्पुरुष समास
इस समास में पूर्व पद संस्कृत का (अ , अन्) और उर्दू का ” ना ” उपसर्ग होते हैं, जो नकारात्मक अर्थ प्रकट करते हैं।
अव्यय = न व्यय होने वाले
नालायक = नहीं है लायक जो
अधीर = धीर न रखने वाला
अमर = ना मरने वाला
नागवार = नहीं है गवारा जो
अमिट = न मिटने वाला
अनश्वर = नश्वर नहीं होने वाला
अमिट = न मिटने वाला
अनासक्त = आसक्ति से रहित
असभ्य = सभ्य नहीं है जो
उपपद तत्पुरुष समास
जब समस्त पद में उत्तर पद कोई प्रत्यय होता है , उसे उपपद समास कहते हैं। जैसे:
जलचर = जल में विचरण करने वाला
स्वर्णकार = स्वर्ण का काम करने वाला
जलद = जल को देने वाला
कठफोड़वा = काठ को फोड़ने वाला
नभचर = नभ में विचरण करने वाला
जलज = जल में जन्म लेने वाला
खग = ख (आकाश) में गमन करने वाला
लुप्तपद तत्पुरुष समास
जब किसी समास में कारक चिह्नों के साथ अन्य पद भी लुप्त हो जाते हैं उसे लुप्त पद तत्पुरुष समास कहते हैं।
दहीबड़ा = दही में डूबा हुआ बड़ा
रसगुल्ला = रस में डूबा हुआ गुल्ला
रेलगाड़ी = रेल पर चलने वाली गाड़ी
तुलादान = तुला के बराबर दिए जाने वाला दान
बैलगाड़ी = बैलों से चलने वाली गाड़ी
पर्णशाला = पर्ण ( घास फूंस ) से बनी हुई शाला
कर्मधारय समास किसे कहते हैं?
कर्मधारय समास का उत्तर पद प्रधान है।
कर्मधारय समास में दोनों पदों के बीच विशेषण विशेष्य यूपी में उपमान का संबंध होता है
विशेषण : जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बदलते हैं उन्हें विशेषण कहते हैं।
विशेष्य : जिन संज्ञा या सर्वनाम शब्दों की विशेषता बतलाई जाती है उन्हें विशेष्य कहते हैं। जैसे
तालाब में नीलकमल खिल रहे हैं।
उपर्युक्त वाक्य में ‘ नील ‘ शब्द विशेषण है, जो कमल की विशेषता बताता है। कमल विशेष्य है।
उपमेय : जिसकी तुलना की जाती है, उसे उपमेय कहते है।
उपमान : जिससे तुलना की जाती है, उसे उपमान कहते हैं।
कर्मधारय समास के उदाहरण
समास : = समास विग्रह
नीलकमल = नीला है जो कमल
पीताम्बर = पीत (पीला) है जो अम्बर (आकाश)
सज्जन = सत् है जो जन
परमाणु = परम है जो अणु
महात्मा = महान है जिसकी आत्मा
महाकाव्य = महान है जो काव्य
महावीर = महान है जो वीर
प्रियजन = प्रिय है जो जन
महाकाल = महान है जो काल
महर्षि = महान है जो ऋषि
महाराजा = महान है जो राजा
मंदबुद्धि = मंद है जिसकी बुद्धि
कालीमिर्च = काली है जो मिर्च
परमात्मा = परम है जो आत्मा
ज्वालामुखी = ज्वाला के समान है जो मुख
श्वेताम्बर = श्वेत है जो अम्बर
महोत्सव = महान है जो उत्सव
नवोढ़ा = नव है जो ऊढा़ (विवाहिता)
नीलोत्पल = नीला है जो उत्पल (कमल)
शक्तिवर्धक = वर्धक है जो शक्ति
मुनिवर = मुनियों में श्रेष्ठ
कमलनयन = कमल के समान नयन
लौहपुरुष = लोहे के समान पुरुष
वज्रदेह = वज्र के समान देह
राजीवलोचन = राजीव (कमल) के समान लोचन (नेत्र)
पाषाणहृदय= पाषाण (पत्थर) के समान हृदय
चरणकमल = कमल रूपी चरण
करकमल = कमल रूपी कर (हाथ)
मुखचन्द्र = चंद्र रूपी मुख
द्विगु समास किसे कहते हैं?
द्विगु समास की पहचान
द्विगु समास में उत्तरपद प्रधान होता है।
इस समास में पूर्व पद कोई संख्यावाचक शब्द होता है।
सामासिक पद में किसी समूह का बोध होता है।
समास विग्रह करते समय वाला, वाली, समाहार आदि शब्द जोड़ते हैं। जैसे :
द्विगु समास के उदाहरण
द्विगु = दो गायों का समाहार
त्रिभुवन = तीन भुवनों (लोक) का समाहार
अष्टाध्यायी = आठ अध्यायों का समूह
चतुर्वेद = चार वेदों का समूह
त्रिवेणी = तीन वेणियों (धाराओं) का समाहार
शताब्दी = शत (सौ) अब्द (वर्षों) का समूह
अष्टधातु = आठ धातुओं का समूह
तिकोना = तीन कोनों वाला
चौराहा = चार राहों (रास्ते) का समाहार
सप्ताह = सात दिनों का समूह
नवरत्न = नौ रत्नों का समूह
पंचतंत्र = पांच तन्त्रों का समूह
नवरात्रि = नौ रात्रियों का समूह
चौमासा = चार महीनों का समूह
त्रिकाल = तीन कालों का समूह
द्वंद्व समास किसे कहते हैं?
द्वंद्व समास की पहचान व विशेषताएं
द्वंद्व समास में दोनों पद प्रधान होते हैं।
समास विग्रह करते समय पदों के बीच में और/ अथवा/ या / आदि शब्द आते हैं।
द्वंद्व समास के भेद
द्वंद्व समास के मुख्य रूप से तीन भेद होते हैं।
१. इतरेतर द्वंद्व
२. समाहार द्वंद्व
३. वैकल्पिक द्वंद्व
१. इतरेतर द्वंद्व
इस समास में समस्त पद प्रधान होते हैं तथा समास विग्रह करते समय पदों के मध्य में और/ एवं लिखते हैं। जैसे
माता-पिता = माता और पिता
भाई-बहिन = भाई और बहिन
राम-कृष्ण= राम और कृष्ण
हरि-हर = हरि और हर (विष्णु और महेश)
राजा-रानी = राजा और रानी
स्त्री-पुरुष= स्त्री और पुरुष
यदि पदों की संख्या तीन या अधिक हो तो समास विग्रह निम्नानुसार करेंगे। जैसे
कंद-मूल-फल = कंद, मूल और फल
रोटी-कपडा-मकान = रोटी, कपड़ा और मकान
दस के बाद की संख्या इतरेतर द्वंद्व समास होती हैं। जैसे
पच्चीस = पांच और बीस
बारह = दस और दो
वासठ = साठ और दो
पैंतीस = तीस और पांच
समाहार द्वंद्व
जब पहले पद के समान ही दूसरा पद हो तो वहां समाहार द्वंद्व समास होता है। जैसे
चाय-पानी= चाय , पानी आदि
फल-फूल = फल , फूल आदि
जीव-जंतु = जीव, जन्तु आदि
रुपया-पैसा = रुपया, पैसा आदि
वैकल्पिक द्वंद्व समास
वैकल्पिक द्वंद्व समास में दोनों पद एक दूसरे के विलोम होते हैं।
जैसे :
लाभ-हानि = लाभ या हानि
इस प्रकार इस समास का विग्रह करते समय दोनों पदों के बीच ‘ या ‘ का प्रयोग करते हैं।
आज-कल = आज या कल
सुख-दुख = सुख या दुख
पाप-पुण्य = पाप या पुण्य
धर्माधर्म= धर्म या अधर्म
आय-व्यय = आय या व्यय
बहुव्रीहि समास किसे कहते हैं?
बहुव्रीहि समास की पहचान और विशेषताएं
इस समास में कोई पद प्रधान नहीं होता है, अर्थात् अन्य पद प्रधान होता है।
बहुव्रीहि समास
इस समास में कोई पद प्रधान नहीं होता है अर्थात कोई अन्य पद प्रधान होता है।
इस समास के अधिकतर उदाहरण पौराणिक होते हैं।
जैसे:
पीताम्बर = पीत है अम्बर जिसके अर्थात विष्णु
शचिपति = शची का है जो पति अर्थात इन्द्र
भूमिजा= भूमि से जन्म लिया है जिसने अर्थात सीता
लम्बोदर = लम्बा है उदर (पेट) जिसका, अर्थात गणेश
हिरण्यगर्भ = हिरण्य (सोना) का हैं गर्भ जिसका, अर्थात् ब्रह्मा
चन्द्रचूड= चन्द्र है चूड़ (सिर) पर जिसके, अर्थात् शिव
मयूरवाहन= मयूर है वाहन जिसका, अर्थात् कार्तिकेय
धनंजय = धन को जय करता है जो – अर्जुन
वाचस्पति = वाक् का है जो पति – बृहस्पति
चौकन्ना = चार कान हैं जिसके – सजग
हिन्दी व्याकरण – ALL EXAM// Best Hindi Grammar// Class 6 to 12/ by Kanhaiya
Varn Vichar in Hindi/ उत्क्षिप्त वर्ण क्या होता है -1
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