हिन्दी व्याकरण लोकोक्ति के इस लेख में हम लोकोक्ति किसे कहते हैं? मुहावरे और लोकोक्ति में अंतर, लोकोक्ति की परिभाषा को जानेंगे। लोकोक्तियां से विभिन्न परीक्षाओं में सवाल पूछे जाते हैं अतः यह महत्वपूर्ण Topic है।
लोकोक्ति दो शब्दों से मिलकर बना है = लोक + उक्ति।जिसका शाब्दिक अर्थ होता है – लोक में प्रचलित उक्ति या कथन।
“लोक प्रचलित किसी किंवदंती, घटना, कहानी आदि का सारांश व्यक्त करने वाली लोक प्रसिद्ध उक्ति या कथन को लोकोक्ति कहते हैं।”
मुहावरे और लोकोक्ति में अंतर ( Lokokti in Hindi)
मुहावरे और लोकोक्ति में अन्तर को निम्नानुसार समझ सकते हैं –
(Lokokti in Hindi)
1. अपनी पगड़ी अपने हाथ – अपनी इज्जत अपने हाथ ।
2. अटका बनिया देते उधार – मजबूरी में व्यक्ति अनचाहा कार्य करता है।
3. अधजल गगरी छलकते जाय – ओछा व्यक्ति ज्यादा इतराता है।
4. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता – अकेला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता/ संगठन में शक्ति है ।
5. अक्ल बड़ी या भैंस – बाहुबल से बुद्धिबल श्रेष्ठ होता है।
6. अपनी ढफ़ली अपना राग – अलग-अलग मत रखना ।
7. अपना हाथ जगन्नाथ – स्वयं द्वारा किया गया कार्य ही भरोसेमंद होता है ।
8. अब पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत – नुकसान हो जाने के बाद पछताने से क्या लाभ।
9. अपना लाल गॅंवाए के दर-दर मांगे भीख – अपने वस्तु को खोकर दूसरों के सामने हाथ फैलाना।
10. अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना – अपनी तारीफ खुद करना/ अपनी बडाई आप करना।
11. अपनी करनी पार उतरनी – अपना क्या कार्य ही शुभ होता है।
12. अपना दाम खोटा हो तो परखने वाले का क्या दोष – अपनी वस्तु खराब हो तो दूसरों को दोष नहीं दिया जाता।
13. अरहर की टाटी गुजराती ताला – मूलन वास्तु के अधिक सुरक्षा/ कुप्रबंध।
14. अभी दिल्ली दूर है – लक्ष्य से दूर होना।
15. अब सतवंती होकर बैठी लूट लिया संसार – जवानी में दुष्कर्म कर बुढ़ापे में धर्मात्मा बनना।
16. अंत भला तो सब भला – परिणाम शुभ निकलने पर सब कुछ अच्छा हो जाता है।
17. अंधी पीसे कुत्ता खाय – किसी के परिश्रम का अयोग्य द्वारा लाभ उठाना।
18. अंधे की लकड़ी – एकमात्र सहारा।
19. अंधा क्या चाहे दो आंखें – इष्ट वस्तु की प्राप्ति होना।
20. अशर्फियां लूटे और कोयलों पर मुहर – मूल्यवान की उपेक्षा, तुच्छ को महत्व।
21. अंधों में काना राजा – मूर्खों के बीच में अल्पज्ञ भी बुद्धिमान माना जाता है।
22. अंधे के हाथ बटेर – अपात्र को स्तरीय वस्तु का मिलना।
23. अंधेर नगरी चौपट राजा – कुप्रशासन/ मूर्ख मुखिया महामूर्ख जनता।
24. अंधा अंध कढावहि दोनों कूप पडन्त- अयोग्य द्वारा अयोग्य को ले डूबना।
25. अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा – जहां मालिक मूर्ख हो वहां सद्गुणों का आदर नहीं होता।
“आ” से शुरू होने वाली हिन्दी व्याकरण लोकोक्तियां और उनके अर्थ ( Lokokti in Hindi)
26. आए थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास – मुख्य उद्देश्य से भटककर गौड़ उद्देश्य में लग जाना।
27. आम के आम और गुठलियों के दाम – दोहरा लाभ।
28. आंख का अंधा गांठ का पूरा – मूर्ख किन्तु धनवान।
29. आंख का अंधा नाम नयनसुख – गुणों के विपरीत नाम।
30. आप न जावे सासरे, औरन क्यूं सीख देय – स्वयं अनुसरण न करके, उसी का दूसरों को उपदेश देना।
31. आगे कुआं पीछे खाई – दोनों तरफ संकट।
32. आपत्तिकाले मर्यादा नास्ति – विपत्ति में धर्म पालन न होना।
33. आधा तीतर आधा बटेर – बेमेल मिश्रण।
34. आठ कन्नोजिया नौ चूल्हे – आपसी फूट।
35. आ बैल मुझे मार – जान-बूझकर विपत्ति मोल लेना।
36. आसमान से गिरा खजूर में अटका – एक विपत्ति के बाद दूसरी विपत्ति आना।
37. आप काज महाकाज – अपने हाथ से किया गया कार्य ही अच्छा
38. आप मेरे बिन स्वर्ग न जावे – बिना अपने कार्य ठीक नहीं होता।
39. आगे हाथ न पीछे पगहा – किसी तरह की जिम्मेदारी न होना।
” इ, ई ” से शुरू होने वाली हिन्दी व्याकरण लोकोक्तियां और उनके अर्थ ( Lokokti in Hindi)
40. इमली के पात पर डंड पेलना – झूठे आश्वासन देना/ सुरक्षा की व्यर्थ गारंटी देना।
41. इन तिलों में तेल नहीं – किसी भी लाभ की आशा न होना।
42. इतनी सी जान, गज भर की जुबान – बातूनी बालक।
43. ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया – संसार में व्याप्त असमानता।
(Lokokti in Hindi)
44. उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई – बेशर्म होना।
45. उलटे बांस बरेली को – उत्पत्ति क्षेत्र में उसी वस्तु का आयात।
46. उलटा चोर कोतवाल को डांटे – दोषी द्वारा निर्दोष पर दोषारोपण करना।
47. ऊधो का लेना न माधो का देना – किसी से कोई मतलब न रखना।
48. उगले तो अंधा, खाएं तो मरे – दुविधा में पड़ना।
49. ऊंट के मुंह में जीरा – आवश्यकता से बहुत कम चीज।
50. उलटी गंगा बहना – परम्परा के विरुद्ध कार्य करना।
51. ऊंची दुकान फीका पकवान – दिखावा ज्यादा और वास्तविकता कम।
52. ऊंट की चोरी और झुके-झुके – न छिप सकने वाली बात को छिपाने का प्रयास करना।
53. उधार दिया और ग्राहक खोया – उधार देने से ग्राहक टूट जाता है।
54. ऊंट किस करवट बैठता है – संभावित परिणाम की प्रतीक्षा करना।
” ए, ऐ ” से शुरू होने वाली लोकोक्तियां और उनके अर्थ
55. एक अनार सौ बीमार – आवश्यकता से बहुत कम चीज।
56. एक ही थैले के चट्टे-बट्टे – समान प्रकृति वाले/ एक जैसे होना।
57. एक तो करेला दूजा नीम चढ़ा – एक साथ दो-दो दोष।
58. एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है – एक बदनाम आदमी सारी जाति को बदनाम कर देता है।
59. एक पंथ दो काज – एक साथ दो कार्य करना।
60. एक और एक ग्यारह होते हैं – संगठन में शक्ति है।
61. एक म्यान में दो तलवारें नहीं आ सकती – एक साथ दो सक्षम व्यक्ति नहीं रह सकते।
62. एक मुंह दो बात – अपनी बात से मुकर जाना।
63. एक ही लकड़ी से सबको हांकना – समान व्यवहार करना।
64. एक हाथ से ताली नहीं बजती – किसी की गलती के पीछे दोनों पक्षों का जिम्मेदार होना।
” ओ, औ ” से शुरू होने वाली लोकोक्तियां और उनके अर्थ
65. ओस चाटे प्यास नहीं बुझती – अपर्याप्त वस्तु से आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती।
66. ओछे की प्रीत बालू की भीत – दुष्टों की संगति क्षणिक होती है।
67. ओखली में सिर दिया तो मूसल से क्या डरना – जान बूझकर ली गई मुसीबत से कैसा डरना।
68. और बात खोटी सही बात रोटी – भोजन व्यवस्था का प्रश्न ही सर्वोपरि होता है।
69. कंगाली में आटा गीला – संकट में और संकट।
70. कानी के ब्याह में कौतुक ही कौतुक – एक दोष के होने पर अनेक दोषों का आ जाना।
71. काबुल में क्या गधे नहीं होते – अपवाद हर जगह होते हैं।
72. कोयले की दलाली में हाथ काले – बुरों के सानिध्य में बुरा परिणाम।
73. कभी घी घना तो कभी मुट्ठी चना – जो मिले उसी में संतुष्ट रहना।
74. कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा – बेमेल वस्तुओं का संग्रह करना।
75. कहां राजा भोज कहां गंगू तेली – सामर्थ्य का बहुत अधिक भिन्न होना।
76. कौआ चले हंस की चाल – दुष्टों द्वारा शुभ कार्यों का दिखावा करना।
77. कोउ नृप होय हमें क्या हानि – निरपेक्ष व्यवहार रखना।
78. कहने से कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता – अड़ियल व्यक्ति दूसरों की सीख नहीं मानता।
79. कर ले सो काम भज ले सो राम – समय रहते कार्य पूर्ण कर लेना अच्छा रहता है।
80. कहे खेत की सुने खलिहान की – कहा कुछ समझा कुछ।
81. कभी गाड़ी नाव पर कभी नाव गाड़ी पर – परिस्थितियां बदलती रहती हैं।
82. कागहि का कपूर चुगाएं श्वान न्हवाए गंग – दुष्टों के स्वभाव में कभी कोई परिवर्तन नहीं आता।
83. ककड़ी चोर को फांसी की सजा नहीं दी सकती – साधारण अपराध की कठोर सजा नहीं दी।
84. कौवा चले हंस की चाल – दुष्टों द्वारा शुभ कार्यों का दिखावा करना।
85. कै हंसा मोती चुगै, कै भूखा मर जाय – महान व्यक्ति अपनी मर्यादा नहीं छोड़ता।
86. काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती है – धोखेबाजी बार-बार नहीं चलती।
” ख ” से शुरू होने वाली लोकोक्तियां और उनके अर्थ
87. खोदा पहाड़ निकली चुहिया – अधिक परिश्रम कम लाभ।
88. खग जाने खग की भाषा – अपने वर्ग के लोग ही एक-दूसरे को समझ सकते हैं।
89. खेत खाएं यार का गीत गाए खशम के – दूसरों से लाभ उठाकर अपनों के गीत गाना।
90. खरी मजूरी चोखा दाम – मेहनत से मिले नगद दाम अच्छे होते हैं।
91. खुदा गंजे को नाखून न दे – अयोग्य को अधिकार मिलना।
92. खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है – एक को देखकर दूसरों में परिवर्तन आना।
93. खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे – लज्जित होकर क्रोध आना।
94. खाली दिमाग शैतान का घर – बेकार बैठने से तरह – तरह की खुरापात सूझती है।
95. खूंटे के बल बछड़ा कूदे – दूसरे की ताकत के भरोसे अकड़ दिखाना।
” ग ” से शुरू होने वाली लोकोक्तियां और उनके अर्थ
96. गागर में सागर भरना – कज्ञ शब्दों में बहुत कुछ कहना।
97. गुड न दे पर गुड़ की सी बात कह दे – मीठी बात कहना।
98. गुड खाएं गुलगुलों से परहेज़ – झूठ और प्रपंच रचना।
99. गोद में बैठकर आंखों में उंगली – शरण में आकर उत्पात मचाना।
100. गरजने वाले बादल बरसते नहीं – जो लोग बढ़ चढ़कर बात करते हैं, वे काम कम करते हैं।
101. गुड खाए मर जाय तो, जहर देने की क्या जरूरत – समझाने बुझाने से काम चल जाए तो तो झगड़ा करने की क्या आवश्यकता।
102. गुदड़ी में लाल नहीं छिपता – मूल्यवान वस्तु की पहचान अपने आप हो जाती है।
103. गई मांगने पूत खो आई भरतार – थोडे़ लाभ के चक्कर में गांठ की पूंजी भी गंवा बैठना।
104. गरीब की जोरू सबकी भाभी – कमजोर पर सब अधिकार जताते हैं।
105. गंगा गए तो गंगादास, जमुना गए तो जमुनादास – सिद्धांतहीन मनुष्य/ अवसरवादी।
” घ ” से शुरू होने वाली लोकोक्तियां और उनके अर्थ
106. घर की मुर्गी दाल बराबर – अपनी वस्तु या व्यक्ति की कद्र नहीं होती।
107. घर की खांड किरकिरी लागे पडौसी का गुड़ मीठौ - अपनी वस्तु की अपेक्षा दूसरों की वस्तु अच्छी लगना।
108. घर का जोगी जोगना आन गाॅऺव का सिद्ध – गांव के योग्य व्यक्ति के बजाय बाहर के अनजान अयोग्य व्यक्ति की ज्यादा इज्जत होती है।
109. घर में नहीं दाने बुढ़िया चली भुनाने – झूठा दिखावा करना।
110. घायल की गति घायल जाने – दुःखी मनुष्य ही दूसरों का दुःख जानते हैं।
111. घोड़ा घास से यारी करेगा, तो खाएगा क्या – मेहनताना मांगने में संकोच नहीं करना चाहिए।
112. चोर-चोर मौसेरे भाई – समान प्रकृति वालों है मित्रता होना।
113. चौबे जी गए छब्बे बनने लेकिन दुब्बे ही रह गर – अधिक लाभ के लालच में स्वयं का सब कुछ गंवा देना।
114. चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए – अत्यंत कंजूस होना।
115. चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात – सुख अल्पकालीन और दुःख दीर्घकालीन होता है।
116. चलती कार नाम गाड़ी – जिसका धंधा चल निकले वहीं चतुर।
117. चुपड़ी और दो-दो – उत्तम वस्तु वह भी अधिक।
118. चोरी और सीनाजोरी – एक तो अपराध उस पर भी अकड़ना।
119. चोर की दाड़ी में तिनका – दोषी के व्यवहार द्वारा दोष का संकेत मिलना।
120. चोरी का माल मोरी में – हराम की कमाई व्यर्थ नष्ट होती है।
121. चट मंगनी पट ब्याह – तत्काल कार्य होना।
” छ ” से शुरू होने वाली लोकोक्तियां
लोकोक्ति किसे कहते हैं?
122. छछूंदर के सिर चमेली का तेल – अयोग्य व्यक्ति के पास स्तरीय वस्तु का होना।
123. छोटे मुंह बड़ी बात – कम उम्र या अनुभव वाले का लम्बी-चौडी बातें करना।
124. छटांक भर आटा पुल पर रसोई – छोटे कार्य के लिए बड़े-बड़े संसाधन जुटाना।
” ज , झ ” से शुरू होने वाली लोकोक्तियां
लोकोक्ति किसे कहते हैं?
125. जितने मुंह उतनी बातें – भांति-भांति की अफवाहें।
126. जीती मक्खी नहीं निगली जाती – जान-बूझकर गलत कार्य स्वीकार नहीं किया जा सकता।
127. जो गरजते वे बरसते नहीं – कथनी और करनी में अंतर।
128. जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ – जितना कठिन परिश्रम उतना बड़ा लाभ।
129. जिसकी लाठी उसकी भैंस – शक्तिशाली की विजय।
130. जंगल में मोर नाचा किसने देखा – ऐसे स्थान पर गुण प्रदर्शन न करें जहां कद्र न हो।
131. जैसा देश वैसा भेष – परिस्थितियों के अनुरूप आचरण करना।
132. जल में रहकर मगर से बैर – समीपस्थ शक्तिशाली से शत्रुता ठीक नहीं।
133. झट मंगनी पट ब्याह – किसी कार्य का जल्दी से हो जाना।
134. झोंपड़ी में रहकर महलों के सपने देखे – अपनी सीमा से अधिक पाने की इच्छा।
लोकोक्ति किसे कहते हैं?
135. टके की हांडी गई कुत्ते की जाती पहचानी गई – थोड़े खर्च में किसी के चरित्र को जानना।
136. ठण्डा लोहा गर्म को काट देता है – शांत व्यक्ति क्रोधी स्वभाव वाले को नष्ट कर देता है।
137. ठोकर लगे तब आंख खुले – कुछ खोकर ही अक्ल आती है।
ड़, ढ से शुरू होने वाली लोकोक्तियां और उनके अर्थ
Lokokti in Hindi
138. डूबते को तिनके का सहारा – विपत्ति में थोड़ी मदद ही काम आती है।
139. डरा सो मरा – डरने वाला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता।
140. ढाक के तीन पात – सदा एक सा रहना/ सदाबहार
141. ढोल में पोल – केवल बाहरी दिखावा।
(Lokokti in Hindi)
142. तू डाल डाल में पात-पात – एक से बढ़कर दूसरा चालाक।
143. तुम्हारे मुंह में घी शक्कर – तुम्हारी बात सच हो।
144. तेल देखो तेल की धार देखो – स्थिति के अनुसार संभावित की प्रतीक्षा करना।
145. ताली एक हाथ से नहीं बजाई जाती – प्रेम या लड़ाई एकतरफ से नहीं होती।
146. ते ते पांव पसारिए जैती लांबी सौर – आय के अनुसार ही व्यय करना चाहिए।
147. तुरंत दान महाकल्याण – शुभ कार्य में देरी कैसी।
148. तलवार का खेत हरा नहीं होता – अनीति का फल अच्छा नहीं होता।
149. तेल तिलों से ही निकलता है – दाता से ही प्राप्ति होती है।
150. तबले की बला बंदर के सिर – दोष किसी का सजा किसी और को।
151. थका ऊंट सराय ताके – थका व्यक्ति आराम चाहता है।
152. थोथा चना बाजे घना – निकम्मा व्यक्ति अधिक डींग हांकता है।
153. दीवारों के भी कान होते हैं – गोपनीय बातें अधिक संवेदनशील होती हैं।
154. दुधारू गाय की लात भी सहन करनी पड़ती है – गुणी व्यक्ति या जिससे हमें लाभ होता है उसका गुस्सा भी सहन करना पड़ता है।
155. दाल में काला होना – संदेश होना।
156. दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीता है – एक बार धोखा खाने पर व्यक्ति सावधान रहता है।
157. दोनों हाथों में लड्डू होना – दोहरा लाभ।
158. दूध का दूध और पानी का पानी – निष्पक्ष न्याय होना।
159. दूर के ढोल सुहावने लगते हैं – दूर से वस्तु अच्छी लगना।
160. धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का – द्विपक्षीय व्यक्ति कहीं का नहीं रहता है।
161. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी – समस्या को जड़ से खत्म कर देना।
162. नौ दिन चले अढ़ाई कोस – धीमी गति से काम करना।
163. नौ नगद न तेरह उधार – उधार के बजाय नगद व्यापार अच्छा होता है।
164. नेकी और पूछ-पूछ – भलाई का काम करने में संकोच कैसा।
165. नाम बड़ा दर्शन छोटे – नाम उंचा लेकिन गुण कम होना।
166. नाच न जाने आंगन टेढ़ा – अपनी अयोग्यता का दोष दूसरों को देना।
167. नंगा क्या नहायेगा, क्या निचोड़ेगा – गरीब व्यक्ति किसी को कुछ नहीं दे सकता।
168. न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी – असम्भव शर्त रखना।
169. नादान की दोस्ती जी का जंजाल – मूर्ख की मित्रता नुकसानदायक होती है।
Lokokti in Hindi
170. पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती – सभी मनुष्य एक जैसे नहीं होते हैं।
171. पांचों उंगलियां घी में – चारों ओर से ला ही लाभ।
172. पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं – बच्चे की प्रतिभा बचपन में ही मालूम हो जाती है।
173. पराधीन सपने हूं सुख नाहीं – परतंत्रता में कभी सुख नहीं मिलता है।
174. पर उपदेश कुशल बहुतेरे – दूसरे को उपदेश देने में सभी चतुर होते हैं।
175. बहती गंगा में हाथ धोना – मौके का फायदा उठाना।
176. बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी – होनी को कब तक टाला जा सकता है।
177. बाप न मारी मेंढकी बेटा तीरंदाज – बड़ों से अधिक कुशलता छोटों द्वारा कर दिखाना।
178. बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना – अयोग्य को भी अप्रत्याशित लाभ मिलना।
179. बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद – मूर्ख किसी वस्तु की कद्र नहीं जानता है।
180. भैंस के आगे बीन बजाई भैंस ने जानी मानी आई – मूर्ख को गुण सिखाना व्यय है।
181. भागते चोर की लंगोटी ही सही – जहां कुछ नहीं मिलने की सम्भावना हो, वहां जो मिले उसी में संतुष्ट रहना चाहिए।
182. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत – कितनी भी कठिनाई आने पर धैर्य रखना चाहिए।
183. मन के लड्डू फ़ीके क्यों – काल्पनिक सोच में कंजूसी नहीं करनी चाहिए।
184. मरता क्या न करता – मजबूर व्यक्ति कुछ भी करने को तैयार रहता है।
185. मन चंगा तो कठौती में गंगा – मन की पवित्रता सर्वोत्तम होती है।
186. मान न मान में तेरा मेहमान – जबरदस्ती किसी के गले पड़ना।
187. मुंह में राम बगल में छुरी – बाहर से अच्छा व्यवहार लेकिन मन में कपट होना।
189. मेंढकी को जुकाम – ओछा व्यक्ति ज्यादा इतराता है।
190. मरता क्या न करता – विपत्ति में फंसा व्यक्ति कुछ भी कर सकता है।
191. मेरी बिल्ली मुझको म्याऊं – आश्रयदाता को ही आंख दिखाना।
192. महंगा रोए एक बार, सस्ता रोए बार-बार – मंहगी वस्तु खरीदते समय कष्ट देती है, लेकिन सस्ती वस्तु हमेशा दुखदाई होती है।
लोकोक्ति किसे कहते हैं?
(Lokokti in Hindi)
193. यहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता – जिस स्थान पर कोई नहीं जा सके।
194. यह मुंह और मसूर की दाल – अपनी हैसियत से अधिक शेखी बघारना।
195. राम नाम जपना पराया माल अपना – दूसरों का माल हड़पने वाले/ ढोंगी व्यक्ति।
196. रस्सी जल गई पर बल नहीं गया – अभियान नहीं त्यागना।
197. राम मिलाई जोड़ी एक अंधा एक कोढ़ी – समान प्रकृति वालों में मित्रता होना।
198. लाठी टूटे न सांप मरे – किसी हानि हुए बिना अपना स्वार्थ सिद्ध करना।
199. लकड़ी के बल बन्दर नाचे – दुष्ट व्यक्ति भी डंडा के बल पर सही कार्य करने लगता है।
200. लेना एक न देना दो – कोई मतलब नहीं रखना।
201. वहम की दवा नहीं होती – शक का कोई इलाज नहीं होता है।
202. विनाश काले विपरीत बुद्धि – प्रतिकूल समय आने पर विवेक नष्ट हो जाता है।
203. सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है – सम्पन्न व्यक्ति को सारी दुनिया खुशहाल ही दिखाई देती है।
204. सौ सुनार की एक लुहार की – व्यर्थ की बातों के बजाय एक मार्मिक कथन महत्वपूर्ण होता है।
205. सेर को सवा सेर – एक से बढ़कर दूसरा होना।
206. सोने पे सुहागा – गुणों के साथ कोई और विशेषता होना।
207. सांच को आंच नहीं – सच्चे व्यक्ति को कोई खतरा नहीं होता है।
208. सांप भी मर जाय इलाठी भी न टूटे – बिना नुकसान के कार्य पूर्ण होना।
209 .हाथ कंगन को आरसी क्या – प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है।
210. हीरे की परख जौहरी जानता है – योग्य व्यक्ति ही किसी वस्तु के गुण जानता है।
211. हथेली पर सरसों नहीं जमती – किसी कार्य को करने में समय लगता है।
212. हर मर्ज की दवा – प्रत्येक समस्या का समाधान होता है।
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