हिन्दी व्याकरण में आग बबूला होना ( aag babula hona) साधारणतया आम बोलचाल में प्रयोग किया जाने वाला वाक्यांश या मुहावरा है। इस मुहावरे का प्रयोग उस समय किया जाता जब कोई व्यक्ति बहुत अधिक क्रोध करता है। इस मुहावरे के बारे में अर्थ, वाक्य प्रयोग और उदाहरण सहित समझिए।
आग बबूला होना हिन्दी व्याकरण में एक मुहावरा है। जब किसी व्यक्ति को सीमा से अधिक क्रोध आता है, उसका क्रोध पर कोई नियंत्रण नहीं रहता है, उस समय इस मुहावरे का आम भाषा में प्रयोग किया जाता है।
आप सामान्य रूप से जानते हैं कि आग की प्रकृति है किसी वस्तु को जलाना। इसी प्रकार अत्यधिक मात्रा में क्रोध करना भी अग्नि के समान ही होता है। क्रोध व्यक्ति को अन्दर ही अन्दर जलाकर कमजोर कर देता है।
अधिक क्रोध करने से व्यक्ति की बुद्धि का नाश होता है और साथ ही उसका विवेक नष्ट हो जाता है। जब व्यक्ति के बुद्धि और विवेक का नाश होने लगता है तो उस व्यक्ति का विनाश भी निश्चित है।
अतः इंसान को कभी भी किसी व्यक्ति या कोई घटना घटित होने पर अपनी सीमा से बाहर अर्थात बहुत अधिक क्रोध नहीं करना चाहिए। क्रोध इंसान को जलाकर खाक बना देता है। जिस प्रकार अग्नि कैसी भी वस्तु हो सबको जलाकर राख कर देती है। क्रोध चिन्ता के समान ही खतरनाक होता है। चिन्ता भी जीवित व्यक्ति को चिंता ( मरा हुआ इंसान) के समान बना देती है।
1. वीकेश कक्षा में अपने सहपाठियों पर छोटी-छोटी बातों पर आग बबूला हो जाती है। अर्थात उसे बहुत अधिक क्रोध आ जाता है।
2. मीनू विद्यालय में पढ़कर अपने घर देरी से पहुंचा। उसकी मां गुस्से से आग बबूला हो रही थी। मीनू के घर पहुंचने पर उसकी पिटाई कर दी।
3. सीमा ने रीमा का पेन तोड़ दिया। इस पर सीमा गुस्से से आग-बबूला हो गई और रीमा से झगड़ने लगी।
4. रमन नाम का विद्यार्थी विद्यालय देरी से पहुंचा, जिस पर विद्यालय का हैड मास्टर आग-बबूला हो गया।
5. किसी व्यक्ति ने एक किसान की फसल चोरी कर ली। जिससे वह किसान क्रोध के मारे आग-बबूला हो उठा।
एक समय की बात है। मिथिला के राजा जनक ने सीता का स्वयंवर का आयोजन रखा। उस स्वयंवर में शर्त रखी गई कि जो भी राजा शिव धनुष को उठा देगा उसी के साथ सीता का विवाह कर दिया जाएगा। सीता उस शिव धनुष से अक्सर बचपन में खेलती थी और उसकी पूजा भी करती थी।
इस स्वयंवर में अनेक राजाओं को राजा जनक ने आमन्त्रित किया गया। स्वयंवर में अपने गुरु के साथ राम लक्ष्मण भी उपस्थित हुए। सभी राजाओं ने बारी-बारी से शिव धनुष को उठाने का प्रयास किया लेकिन कोई भी राजा इस धनुष को उठाने में कामयाब नहीं हो सका।
इस दृश्य को देखकर राजा जनक को गुस्से से आग-बबूला हो उठता है और कहता है कि यह पृथ्वी क्षत्रियों से विहीन हो गयी है और कोई भी राजा इस धनुष को उठाने की बात बहुत दूर, हिला भी नहीं सका।
इस बात को सुनकर लक्ष्मण क्रोधित हो उठा और गुस्से से आग-बबूला होकर कहने लगा , यह धनुष तो कुछ भी नहीं है इस सारे ब्रह्माण्ड को उलटकर रख दूं यदि मेरे भाई और गुरु जी की आज्ञा हो तो। गुरु जी ने लक्ष्मण को शान्त किया और भगवान राम को धनुष उठाने की आज्ञा दी।
भगवान राम ने जैसे ही धनुष को उठाकर प्रत्यंचा चढ़ाने का प्यास किया तो धनुष टूट गया। राजा जनक प्रसन्न हो जाता है और सीता भगवान राम के गले में जयमाला पहना देती है और उसका विवाह हो जाता है।
इस धनुष के टूटने की खबर भगवान परशुराम को लगती है तो वह क्रोध से आग-बबूला हो जाता है और सभा में उपस्थित हो जाता है। उसको भगवान राम ने अपनी दिव्य शक्ति से अवगत कराया, उसके बाद परशुराम भगवान आश्वस्त हो जाते हैं कि यह तो साक्षात विष्णु के अवतार हैं।
इस मुहावरे से हमें शिक्षा लेनी चाहिए कि हमें कभी भी बहुत अधिक क्रोध नहीं करना चाहिए। अत्यधिक क्रोध करने से हमारी बुद्धि और विवेक दोनों नष्ट हो जाते हैं और इंसान पतन की ओर अग्रसर होने लगता है।
हम उम्मीद करते हैं कि “आग बबूला होना” मुहावरा आपको भली-भांति समझ में आ गया होगा। आपका कोई सवाल हो तो कमेंट करें।आपको उचित जवाब दिया जायेगा।
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