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Hindi Grammar / November 28, 2024

REET 2025 : Best Teaching Methods Notes/ हिन्दी की शिक्षण विधियां by Kanhaiya Singh

हिन्दी की शिक्षण विधियां ( Teaching Methods) हिन्दी शिक्षक भर्ती परीक्षा का महत्वपूर्ण भाग है। विभिन्न अध्यापक भर्ती जैसे Rajasthan shikshak bharti, teacher grade second, शिक्षक भर्ती L-1 L-2, Reet 2025 में इनसे सवाल पूछे जाते हैं। इस लेख में  teaching methods में project method को सरल भाषा में समझिए

 

Best Teaching Methods Notes/ REET 2025/ हिन्दी की शिक्षण विधियां

 

किसी भी भाषा को सीखने के लिए जो तरीका अपनाया जाता है उसे शिक्षण विधियां कहते हैं। एक अध्यापक शिक्षण उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए जिन तरीकों को प्रयोग में लाता है उन्हें शिक्षण विधियां कहते हैं।

हिंदी की शिक्षण विधियां 

प्रायोजना विधि (Project Method )

सर्वप्रथम प्रयोजना विधि की विचारधारा जॉन डीवी ने दी थी।

बेलार्ड के अनुसार 

“प्रोजेक्ट यथार्थ जीवन का ही भाग है जो विद्यार्थी में प्रयोग किया जाता है।”

स्टीवेंसन के अनुसार 

“प्रोजेक्ट एक समस्यामूलक कार्य है जो स्वाभाविक स्थिति में पूरा किया जाता है।”

पार्कर के अनुसार 

“प्रोजेक्ट कार्य की एक इकाई है जिसमें छात्रों को कार्य की योजना और संपन्नता के लिए उत्तरदाई बनाया जाता है।”

जान ड्यूवी के शिष्य क्लिपैट्रिक ने प्रयोजना विधि का प्रतिपादन किया।

किलपैट्रिक के अनुसार : “हम चाहते हैं कि शिक्षा वास्तविक जीवन की गहराई में प्रवेश करें। केवल सामाजिक जीवन में ही नहीं वरुण उत्तम जीवन में जिसकी हम आशा करते हैं।”

 

प्रयोजना विधि (project method) के मुख्य सिद्धांत 

1. प्रायोजना का उद्देश्य : बालकों को हल करने के लिए जो समस्या या सवाल दिए जाते हैं वे उद्देश्य पूर्ण होते हैं। बालक उन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए इस विधि का अनुसरण करता है।

2. रोचकता : इस विधि में विद्यार्थी या बालक स्वयं अपनी रुचि के अनुसार किसी समस्या के कार्य या प्रोजेक्ट को चुनता है।

3. क्रियाशीलता : बालक स्वाभाविक रूप से जिज्ञासु होते हैं।और जिज्ञासाबस में चिंतन, तर्क शक्ति आदि के भाव से किसी कार्य को करते हैं। इस विधि में विद्यार्थी और अध्यापक दोनों ही क्रियाशील रहते हैं। बालक के सहयोग के लिए शिक्षक होता है।

3. स्वतंत्रता : इस विधि में बालक स्वतंत्र रूप से अपने कार्य को करते हैं। शिक्षक केवल उनके सहयोग के लिए होता है। शिक्षक बालकों को किसी कार्य को करने के लिए बाद नहीं कर सकता।

अर्थात इस विधि में बालक प्रारंभ से लेकर के अंत तक कार्य करने के लिए स्वतंत्र होता है छात्र स्वयं अपनी योजनाओं का चुनाव करते हुए अपने कार्य को अंजाम देते हैं।

4. सामाजिकता : बालक सामान्य रूप से समाज का अंग होता है। प्रोजेक्ट विधि में बालकों को अनेक ऐसे अवसर दिए जाते हैं जिनके द्वारा उनको सामाजिक जीवन का अनुभव प्राप्त होता है ।और उनमें सहयोग, सद्भावना, सहकारिता, प्रेम, भाईचारा, सुहानुभूति आदि गुणों का विकास होता है।

5. वास्तविकता : बालकों के द्वारा प्रोजेक्ट विधि में जो कार्य संपन्न कराया जाता है वह वास्तविक परिस्थितियों के अनुकूल होता है उसे कार्य को करने से बालकों को प्रेरणा मिलती है तथा बालकों को इस प्रकार शिक्षा से जोड़ते हुए इन कार्यों कराया जाता है।

6. उपयोगिता : सामान्य रूप से विद्यार्थी अपनी रुचि के अनुसार जिस कार्य को करता है तो कार्य का परिणाम सकारात्मक होता है। किसी प्रोजेक्ट पर कार्य करते हुए बालक जो कुछ भी सीखना है वह स्वयं करके ही सिखाता है। इस प्रकार यह विधि बालक के लिए बहुत ही उपयोगी होती है।

प्रायोजना विधि के सोपान कौन-कौन से हैं?

प्रायोजना विधि के सोपान

Step of project Method 

1. परिस्थितियां उत्पन्न करना 

शिक्षक बालकों की योग्यताओं के और क्षमताओं के आधार पर ऐसी स्थिति उत्पन्न करे कि जिससे किसी न किसी समस्या या प्रोजेक्ट को बालक चुन सके। और प्रज्ञा प्रयोजन चुन करके बालक अपना पक्ष रख सके। बालक शिक्षक के साथ विभिन्न प्रकार से विचारों विमर्श करता है।

शिक्षक बालकों को विभिन्न प्रदर्शनी,दर्शनीय स्थलों, मेलों, पुरातत्व स्थलों इत्यादि पर ले जाता है और विभिन्न सामाजिक गतिविधियों से परिचित कराया जाता है। बालक इन स्थलों को देखकर के अपने मन में सोचता है और प्रोजेक्ट को तैयार करता है।

2. प्रयोजन का चुनाव 

विद्यार्थी किसी न किसी समस्या को चुनकर के अपना प्रोजेक्ट को चॉइस करता है जो बालक के रुचि के अनुसार होता है। बालक शिक्षक से विचार विमर्श करते हुए प्रोजेक्ट के गुण-दोषों और के बारे में जानकारी प्राप्त करता है। शिक्षक बालकों को इसके लिए मार्गदर्शन करता है और उन्हें योजना की चुनाव की स्वीकृति प्रदान करता है।

3. कार्यक्रम बनाना 

शिक्षक और विद्यार्थी के विचार विमर्श के बाद योजना निश्चित हो जाती है। योजना निश्चित हो जाने के पश्चात उसको पूरा करने के लिए कार्यक्रम तैयार किया जाता है। इस कार्य को वास्तविक और स्वाभाविक परिस्थितियों में पूरा करने के लिए शिक्षक और विद्यार्थी दोनों विचार- विमर्श द्वारा इसकी कार्यशैली को निश्चित करते हैं। प्रत्येक बालक योग्यता के अनुसार कार्य मिलता है और सभी छात्र उस योजना को वह पूरा करते है।

4. कार्यक्रम को क्रियान्वित करना 

कार्यक्रम बन जाने के बाद प्रत्यक्ष छात्र क्रिया के द्वारा सीखते हुए स्वयं करता है। सभी छात्र अपनी योग्यता के अनुसार अपने-अपने उत्तरदायित्वों का निर्माण करते हैं। शिक्षक उनको कार्य करने में सहायता प्रदान करता है। तथा बीच-बीच में उनका निरीक्षण करते हुए उनको प्रोत्साहित करता है।

विद्यार्थियों को इस प्रक्रिया में विभिन्न कार्य करने होते हैं जैसे – पढ़ना, लिखना, वस्तुओं को एकत्रित करना, विचार-विमर्श करना ,उनका निर्माण करना। इन सभी के बाद वह अपने कार्य को अंतिम पड़ाव तक पहुंचाते हैं।

5. कार्य का मूल्यांकन करना 

विद्यार्थियों द्वारा प्रोजेक्ट को पूरा कर लेने के बाद उसका मूल्यांकन किया जाता है। योजना के कार्यक्रम के अनुसार सामूहिक रूप से विचार विमर्श करते हैं तथा अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। प्रोजेक्ट के अंतिम रूप से पूर्ण होने पर अध्यापक के द्वारा उसका मूल्यांकन किया जाता है।

6. कार्य का लेखा-जोखा रखना 

बालक जब प्रोजेक्ट का चुनाव करता है, उस समय से लेकर और जो भी क्रियाकलाप वह पूरे समय में करता है। किन-किन घटनाओं का उसे सामना करना पड़ता है, क्या-क्या विचार- विमर्श किया है, कौन-कौन सी विधियां अपने कौन-कौन से उपकरणों का प्रयोग किया गया, किसका सहयोग लिया गया, किन पुस्तकों का प्रयोग किया गया, कौन-कौन से उपकरण प्रयोग में लाए हैं और कौन-कौन से कार्य किए गए उन सभी का लेखा-जोखा तैयार किया जाता है।

इस प्रकार संपूर्ण प्रोजेक्ट बन करके तैयार हो जाता है।

प्रायोजना विधि की विशेषताएं 

 

1. चरित्र निर्माण में सहायक 

प्रोजेक्ट के द्वारा छात्रों के सर्वांगीण विकास में सहायता मिलती है। बालक में आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता और सामाजिक गुणों का विकास, सौंदर्य की अनुभूति, नेतृत्व की भावना और कार्य करने में स्थिरता प्राप्त होतीहै। इस प्रकार बालक के चरित्र का निर्माण होता है।

2. प्रयोगात्मक एवं व्यवहारिक विधि 

इस विधि में अध्यापक और छात्र दोनों ही क्रियाशील रहते हैं। इस विधि द्वारा बालक अपने वास्तविक जीवन की समस्याओं को हल करने का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। इस प्रकार यह विधि “करके सीखना” नियम पर आधारित होती है। इससे बालक को सृजनात्मक तथा क्रियात्मक प्रवृत्तियों का विकास होता है।

3. मनोवैज्ञानिकता 

प्रोजेक्ट विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित होती है ।बालक की स्वाभाविक रुचि मनोवृतियों और उसकी चेषटाओं का और उसकी योग्यताओं का इसमें विशेष ध्यान रखा जाता है।

बालक की जिज्ञासाओं को इसमें शामिल करते हुए उसकी रचनात्मकता और अन्वेषणात्मक प्रवृत्तियों का पता लगाया जाता है और विद्यार्थी अनुभव से सीखने का अवसर प्राप्त करता है।

4. तर्कशक्ति, चिंतन, निर्णय करने की शक्ति का विकास 

प्रयोजन विधि द्वारा बालकों में तर्कशक्ति, निर्णय करने की शक्ति, चिंतन शक्ति, उसकी निरीक्षण शक्ति , अन्वेषण शक्ति और निर्णय लेने की शक्ति का पर्याप्त रूप से विकास होता है। इस प्रकार यह विधि बालक के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।

5. स्थाई एवं स्पष्ट ज्ञान की प्राप्ति 

इस विधि में बालक स्थाई ज्ञान प्राप्त करता है। इस विधि में रटने कीप्रवृत्ति को महत्व नहीं दिया जाता है। प्रोजेक्ट विधि में बालक अपने रुचि के अनुसार अपनी लगन से और मेहनत से और अपने अनुभवों और क्रियाओं द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हैं। और अर्जित ज्ञान को व्यवहार में लाते हुए उसे स्थाई बनाते हैं।

6. पिछड़ी बालकों की समस्या का समाधान 

प्रोजेक्ट विधि में पिछड़े बालको को भी सम्मिलित किया जाता है।जो अपनी रुचि के अनुसार भावनाओं को प्रकट करते हैं और अन्य बालकों को सहयोग से अपने प्रोजेक्ट को तैयार करते हैं। इस प्रकार उनमें स्वावलंबन की भावना का विकास होता है तथा अपने ज्ञान को बढ़ाते हैं।

इनके अलावा बालक में संवाद रूप से शिक्षण देने की एक आदर्श विधि होती है। इस विधि में विषय का चुनाव बालक की आवश्यकता के अनुसार किया जाता है। इस विधि में विद्यार्थी अपने रुचि और उत्साह के साथ अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करते हैं तथा सदैव बालक रचनात्मक रूप से कार्य करते हुए अनुशासन को बनाए रखना है। इस विधि में गृह कार्य देने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती है।

हिन्दी की शिक्षण विधियां 

प्रायोजना विधि ( Project Method) : FAQ 

Q. 1. प्रोजेक्ट विधि (project method)के दोष कौन-कौन से हैं? 

उत्तर : प्रोजेक्ट विधि में निम्न दोष है-

क) इस विधि में क्रमबद्ध अध्ययन नहीं किया जाता है।

ख) प्रोजेक्ट विधि के आधार पर कोई आवश्यक पाठ्यपुस्तक उपलब्ध नहीं होती हैं।

ग) इस विधि में विद्यार्थियों की संख्या अधिक होने पर उसके अनुपात में योग और प्रशिक्षित अध्यापक उपलब्ध नहीं हो पाते हैं जिससे इस कार्य को करना कठिन होता है।

घ) इस विधि के अनुसार कार्य करने में समय काफी लगता है आकर सिद्धि के अनुसार कार्य किया जाए तो पाठ्यक्रम 1 वर्ष में भी पूरा नहीं हो पाएगा।

च) इस विधि में अधिक में होता है क्योंकि इसमें काम में ले जाने वाले सामग्री तथा यंत्रों की आवश्यकता पड़ती है जो काफी महंगे होते हैं।

छ) इस विधि में अध्यापक को केवल मार्गदर्शन के रूप में चिन्हित किया जाता है इसलिए बालक को अपने प्रोजेक्ट को तैयार करने में अध्यापक का पूर्ण सहयोग नहीं मिल पाता है।

Q. 2. प्रोजेक्ट विधि (project method)के महत्वकौन कौन से हैं?

उत्तर: इसमें बालक को प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त होता है।

बालक करके सीखना है।

बालक में मनोवैज्ञानिक तक विकास होता है।

विद्यार्थी में प्रयोगात्मक ता का विकास होता है।

बालक में सामाजिक व्यवहार का विकास होता है।

Q.3. प्रोजेक्ट विधि (project method)के जन्मदाता कौन है? 

जॉन ड्यूवी

प्रोजेक्ट विधि को बाद में उसके शिष्य किलपैट्रिक ने आगे बढ़ाया।

Q. 4. प्रयोजना शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किसने और कहां किया? 

उत्तर : प्रोजेक्ट का शब्द का सबसे पहले प्रयोग कोलं

बिया विश्वविद्यालय के प्रशिक्षण विश्वविद्यालय के विद्वान रिचर्ड ने सन 1900 में किया था।

 

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