इस लेख में अभिवृद्धि व विकास की परिभाषा, Growth and Development Difference/ अभिवृद्धि और विकास में अंतर, वृद्धि और विकास के नियम, बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र नोट्स, reet 2025 phychology notes, reet exam और अन्य शिक्षक भर्ती में उपयोगी रहेंगे।
अभिवृद्धि का अर्थ (meaning of growth)
वृद्धि (Growth) का शाब्दिक अर्थ होता है – शारीरिक विकास।
अर्थात “किसी बालक के शरीर में परिपक्वता के अनुसार लम्बाई, वजन, आकृति में जो भौतिक परिवर्तन होते हैं, उसे अभिवृद्धि कहते हैं।”
प्राणी में होने वाले जैविक परिवर्तन को अभिवृद्धि कहते हैं।अभिवृद्धि को मापा जा सकता है और निरीक्षण किया जा सकता है।
विकास शब्द का प्रयोग व्यापक रूप में होता है। विकास में प्राणी में परिपक्वता के साथ-साथ अन्य सभी परिवर्तन होते हैं। अर्थात बालक या मनुष्य में जितने भी शारीरिक, मानसिक आदि क्रमबद्ध परिवर्तन होते हैं, उसे विकास कहते हैं।
हरलाॅक के अनुसार
“विकास अभिवृद्धि तक की सीमित नहीं है। इसके बजाय इसमें परिपक्वावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील कम निहित रहता है। विकास के परिणामस्वरुप व्यक्ति में नवीन विशेषताएं और नवीन योग्यताएं प्रकट होती हैं।”
रेबर के अनुसार
“किसी प्राणी के पूर्ण जीवन विस्तार में होने वाले परिवर्तनों के क्रम को विकास कहते हैं।”
सोरेनसन के अनुसार
“अभिवृद्धि शब्द का प्रयोग सामान्यतः शरीर और उसके अंगों के भार (waight) तथा आकार में वृद्धि के लिए किया जाता है। इस वृद्धि को नापा और तोला जा सकता है। विकास का संबंध अभिवृद्धि से अवश्य होता है, पर यह शरीर के अंगों में होने वाले परिवर्तनों को विशेष रूप से व्यक्त करता है।”
जैसे :– बालक की हड्डियां आकार में बढ़ती है यह भी बालक की वृद्धि है। किंतु हड्डियां होने के कारण उनके स्वरूप में जो परिवर्तन आ जाता है वह विकास को दर्शाता है। इस प्रकार विकास में अभिवृद्धि भी होती है।
Growth and development difference
1. वृद्धि का स्वरूप बाह्य होता है। इसमें केवल ऐसे परिवर्तन आते हैं जिनका मात्रात्मक मापन संभव होता है। जैसे : किसी बालक के शरीर की लम्बाई या वजन में होने वाले परिवर्तनों को हम मात्रात्मक रूप में माप या तौल सकते हैं। अतः यह अभिवृद्धि होगी।
जबकि विकास एक आन्तरिक परिवर्तन होता है। आसमान सभी परिवर्तनों का बोध होता है जान का मात्रात्मक मापन संभव हो तथा जिनके निरीक्षण किया जा सकता है इसलिए शारीरिक लंबाई, वजन आदि के साथ-साथ सामाजिक परिवर्तन, नैतिक परिवर्तन और व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन आदि विकास के अंतर्गत आते हैं।
2. वृद्धि शब्द का प्रयोग संकुचित अर्थ में होता है जबकि विकास शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में लिया जाता है।
3. अभिवृद्धि कुछ समय के बाद रुक जाती है जबकि विकास जीवन पर्यंत चलता रहता है।
4. अभिवृद्धि में कोई निश्चित दिशा और क्रम नहीं होता है जबकि विकास में एक निश्चित दिशा और क्रम होता है।
5. वृद्धि एक असतत् प्रक्रिया है। अभिवृद्धि कुछ समय बाद रुक जाती है या कम हो जाती है। अभिवृद्धि मुख्य रूप से किशोरावस्था तक होती है। जबकि विकास सतत् प्रक्रिया है। मनुष्य में मानसिक विकास, सामाजिक विकास तथा नैतिक विकास की मृत्यु तक लगातार जारी रहता है।
6. अभिवृद्धि को सीधा मापा जा सकता है तथा इसके परिवर्तन रचनात्मक होते हैं। जबकि विकास का सीधा मापन संभव नहीं है तथा विकास में होने वाले परिवर्तन रचनात्मक और विनाशात्मक परिवर्तन कहलाते हैं।
7. अभिवृद्धि से विकास में मदद मिल सकती है लेकिन विकास से वृद्धि से कोई सहायता नहीं मिल सकती है।
8. वृद्धि विकास पराश्रित नहीं होती लेकिन विकास कुछ आंशिक रूप से वृद्धि पर आश्रित होता है।
वृद्धि एवं विकास के नियम ( rules of growth and development)
Reet 2025 , reet phychology
विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।विकास की प्रक्रिया माता के गर्भ से ही आरंभ हो जाती है तथा मृत्यु तक निरंतर चलती रहती है। एक सूक्ष्म आकार से अपना जीवन प्रारंभ करके हम सब के व्यक्तित्व के सभी शारीरिक, मानसिक, सामाजिक आदि संपूर्ण विकास इसी निरंतरता के कारण संपन्न होते हैं।
विकास सभी बच्चों का एक समान रूप से होता है एक अवस्था के बाद दूसरे व्यवस्था आती है अर्थात चलने से पहले बालक खड़ा होता है। सभी बच्चों के मौलिक दांत करने के बाद में स्थाई दांत आते हैं। सभी बालक बोलने से पहले कुछ बलबलाते हैं उसके बाद बोलना सीखते हैं।
शैशवावस्था एवं किशोरावस्था में विकास स्पष्ट रूप से दिखाई देता है किंतु अन्य अवस्थाओं में ऐसा नहीं होता है। शैशवावस्था के शुरू के वर्षों में वृद्धि एवं विकास की गति तीव्र होती है लेकिन बाद के वर्षों में यह धीमी पड़ जाती है।
इसके बाद किशोरावस्था के प्रारंभ में इसकी गति में तेजी से वृद्धि होती है तथा यह अधिक समय तक नहीं रहती है। इस प्रकार हम समझ सकते हैं की वृद्धि और विकास की गति में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। किसी भी अवस्था में एक जैसी स्थिति नहीं रहती है।
बालक में मानसिक एवं गतिशील क्रिया के अध्ययन से यह पता लगता है कि बालकों में यह क्रियाएं सामान्य रूप से होती हैं। विभिन्न प्रकार के उद्दीपकों के प्रति उनमें संपूर्ण शरीर की उत्तेजित अवस्था को देखा जा सकता है।
आयु बढ़ने के साथ-साथ बालक जब किसी वस्तु को 6 माह में पकड़ने के लिए दोनों हाथों का उपयोग करता है वहीं बालक 1 वर्ष के लगभग होने पर उसे हाथ से पकड़ने लगता है इस प्रकार विकास सामान्य अवस्था से विशिष्ट अवस्था की ओर धीरे-धीरे बढ़ता है।
बालक का विकास संपूर्णता से विभेदीकरण की ओर होता है। जन्म लेने के बाद बालक स्पर्श करना ध्वनि एवं दृष्टि आदि संवेदना में अंतर नहीं कर पाता है।
लेकिन जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ़ती जाती है वह इन संवेदनाओं में अंतर करना सीख जाता है।इसके साथ ही विभिन्न संवेदनाओं की तीव्रता में भी भेद करना सीख जाता है। बालक पास एवं दूर, खुरदुरा एवं चिकना आदि की पहचान करना सीखना है।
लड़के और लड़कियों को विकास के दरों में अंतर होता है लड़कों को तुलना में लड़कियां जल्दी परिपक्व हो जाती हैं। किशोरावस्था के प्रारंभ लड़कियां लड़कों से ऊंचाई में लंबी और वजन में भारी होती हैं किंतु किशोरावस्था समाप्त होने के बाद लड़के लड़कियों से आगे निकल जाते हैं।
विकास की दिशा के बारे में कुप्पूस्वामी ने इसके बारे में कहा है कि विकास सेफेलोकोडल (Cephalocaudal) अर्थात सिर से पैर की ओर होता है। सबसे पहले बालक अपने सिर और भुजाओं की गति पर नियंत्रण करना सीखना है उसके बाद पैरों पर धीरे-धीरे खड़ा होना सीख जाता है। फिर चलना सीखता है।
और दूसरे नियम के अनुसार प्रोक्सिमोडिस्टल (Proximodistal) क्रम में होता है। इस नियम में विकास शरीर के मध्य से बाहर की ओर होता है। जैसे पहले रीड की हड्डी का विकास होता है उसके बाद भुजाओं का, फिर हाथका, हाथ की उंगलियों का उसके पश्चात संपूर्ण शरीर का संयुक्त विकास होता है।
वंशानुक्रम
हमारे पूर्वजों के द्वारा हस्तांतरित किए गए गुणों के मिश्रित समूह को ही वंशानुक्रम कहते हैं। इसलिए वंशानुक्रम जन्मजात गुणों का योगफल होता है।
किसी व्यक्ति का वंशानुक्रम उसके माता-पिता तथा अन्य पूर्वजों के ऐसे गुण हैं जाने हुए व्यक्ति उनसे जन्मजात रूप में प्राप्त करता है।
वुडवर्थ के अनुसार : “वंशानुक्रम में वे सभी बातें समाहित रहती है जो जीवन का प्रारंभ करते समय जन्म के समय नहीं बल्कि जन्म से लगभग नौ माह पूर्व गर्भाधान के समय व्यक्ति में उपस्थिति रहती थी।”
1. समानता का नियम : इस नियम के अनुसार बच्चे अपने माता-पिता के समान ही प्रवृत्ति वाले होते हैं जैसे माता-पिता होते हैं वैसे ही बच्चे होते हैं।
2. भिन्नता का नियम : इस नियम के अनुसार बालक अपने माता-पिता से कुछ भिन्न होते हैं कभी-कभी बुद्धिमान माता-पिता के बच्चे अल्प बुद्धि हो सकते हैं तथा अल्प बुद्धि माता-पिता के बच्चे बुद्धिमान हो सकते हैं। गौरवर्णी माता-पिता के बच्चे श्याम वर्ण को जाते हैं।
3. प्रत्यागमन का नियम: प्रत्यागमन के नियम के अनुसार प्रत्येक गुण में औसत की ओर प्रत्यागमन करने की प्रवृत्ति पाई जाती है इस गुण के अनुसार बहुत प्रतिभाशाली माता-पिता के बच्चे अपने माता-पिता की अपेक्षा प्रतिभाशाली होते हैं।
4. माता-पिता के पूर्वजों का नियम: बालक के माता और उसके पूर्वजों द्वारा तथा उसके पिता व उसके पूर्वजों के द्वारा उनके वंशानुक्रम के आधे आधे भाग का निर्धारण भी होता है।
मनुष्य में गुणसूत्र की संख्या 46 या 23 जोड़ी होती है पुरुष के 46 गुणसूत्र के 23 जोड़ों में से केवल 22 जोड़ों के गुणसुत्र ही महिला व पुरुष में समान होते हैं । 23वीं जोड़ी महिला और पुरुष में अलग-अलग होती है। जो स्त्री पुरुष यानी बालक बालिका के जन्म निर्धारण करती है।
1. बालक का विकास और वृद्धि निर्भर करती है:
A. मनोरंजन पर
B. शिक्षा पर
C. सामाजिक गुणों पर
D. वंशानुक्रम पर
उत्तर : D : वंशानुक्रम पर
2. बालक की उम्र के साथ-साथ उसकी लंबाई भी बढ़ती है यह किस विकास को दर्शाता है? (Phychology)
A. मानसिकविकास
B. शारीरिक विकास
C. गामक विकास
D. संवेगात्मक विकास
उत्तर: (C) गामक विकास
3. बालक का विकास प्रारंभ होता है – reet phychology
A. बाल्यावस्था में
B. शैशवावस्था में
C. किशोरावस्था
D. वृद्धावस्था
उत्तर : (B) शैशवास्था में।
4. वाटसन ने नवजात शिशु में मुख्य रूप से कितने संवेगों को बताया है? ( Phychology)
A. कपट और उत्तेजना
B. भय, क्रोध और स्नेह
C. कपट और प्रसन्नता
D. प्रसन्नता और उत्तेजना
उत्तर : (B) भय, क्रोध और स्नेह।
Top Education psychology Notes by Kanhaiya Singh/ REET 2025, Teacher first grade, Second Grade,
हिन्दी व्याकरण – ALL EXAM// Best Hindi Grammar// Class 6 to 12/ by Kanhaiya Singh
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